डॉ. ग्रेस कूजूर: आदिवासी अंचल से निकली आशा की किरण

 


डॉ. ग्रेस कूजूर: आदिवासी अंचल से निकली आशा की किरण



लेखक: जसविंदर वाधेरा



डॉ. ग्रेस कूजूर का जीवन केवल संघर्ष और उपलब्धियों की कहानी नहीं है, बल्कि यह सेवा, चिकित्सा विज्ञान और समाज-सेवा की प्रेरणा से भरी हुई है। आदिवासी और पिछड़े क्षेत्रों में जन्मी डॉ. कूजूर ने बच्चों की मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है। उनके प्रयासों से बच्चों के जीवन में आत्मविश्वास, सुरक्षा और आशा की किरण जगी। यह शोध लेख उनके चिकित्सकीय योगदान, समाज सेवा, शिक्षा और व्यक्तिगत संघर्ष की कहानी को विस्तारपूर्वक प्रस्तुत करता है।


प्रारंभिक जीवन और प्रेरणा

डॉ. ग्रेस कूजूर का जन्म छत्तीसगढ़ के एक दूरदराज़ आदिवासी बहुल गाँव में हुआ। उनका बचपन कठिनाइयों और सीमित संसाधनों से भरा था। परंतु इन्हीं कठिनाइयों ने उन्हें मजबूत, संवेदनशील और समाज के प्रति जिम्मेदार बनाया। गाँव की मिट्टी, प्राकृतिक वातावरण, आदिवासी संस्कृति और लोक परंपराओं ने उनके चरित्र और दृष्टिकोण पर स्थायी प्रभाव डाला। बचपन में ही उन्होंने यह समझ लिया कि शिक्षा और स्वास्थ्य किसी भी समाज की प्रगति के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। यही सोच उनके जीवन की दिशा बन गई।


चिकित्सकीय योगदान: बच्चों के लिए समर्पित सेवा

डॉ. कूजूर ने विशेष रूप से बच्चों की मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान दिया। ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों के बच्चे न केवल पोषण और शिक्षा की कमी का सामना कर रहे थे, बल्कि मानसिक और भावनात्मक चुनौतियों से भी जूझ रहे थे। उन्होंने ग्रामीण स्कूलों और गांवों में मानसिक स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए, बच्चों में तनाव, भय और अवसाद की पहचान की, माता-पिता और शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यशालाएँ चलाई। व्यक्तिगत केस स्टडीज़ के माध्यम से उन्होंने बच्चों की भावनात्मक और सामाजिक समस्याओं का समाधान किया। उनके प्रयासों ने बच्चों के जीवन में वास्तविक बदलाव लाया।

उदाहरण के तौर पर, गाँव के एक बच्चे राहुल (काल्पनिक नाम) को बचपन में मानसिक चिंता और आत्मविश्वास की कमी थी। डॉ. कूजूर ने उसकी नियमित मानसिक जाँच, खेलकूद और कला आधारित गतिविधियों के माध्यम से उसे मानसिक रूप से मजबूत बनाया। आज राहुल पढ़ाई और सामाजिक जीवन में पूरी तरह सक्रिय और खुशहाल है।

शिक्षा और ‘अर्पण’ संस्था

डॉ. कूजूर ने बच्चों की शिक्षा को भी प्राथमिकता दी। उन्होंने आदिवासी और पिछड़े क्षेत्रों के बच्चों के लिए ‘अर्पण’ संस्था की स्थापना की। इस संस्था का उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना, बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और शिक्षा का समन्वय करना और बच्चों के समग्र विकास पर ध्यान देना था।

डॉ. कूजूर का दृष्टिकोण यह था कि शिक्षा और मानसिक स्वास्थ्य अलग नहीं हैं। बच्चों की भावनात्मक स्थिति को समझकर ही शिक्षा को प्रभावी बनाया जा सकता है। उनके नेतृत्व में, संस्था ने बच्चों के जीवन में स्थायी परिवर्तन लाया।

महिला सशक्तिकरण और समाज सेवा

डॉ. कूजूर ने महिलाओं के उत्थान के लिए भी कई कार्यक्रम चलाए। उन्होंने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने हेतु प्रशिक्षण दिया, जिसमें सिलाई, कढ़ाई, हस्तशिल्प, कृषि और व्यवसाय प्रबंधन शामिल थे। साथ ही, उन्होंने स्वास्थ्य, पोषण और मानसिक स्वास्थ्य पर भी जागरूकता फैलाई। उनकी सोच थी कि जब महिला सशक्त होगी, तो पूरा परिवार और समाज मजबूत बन जाएगा। उनके प्रयासों से कई महिलाएं आत्मनिर्भर हुईं और समाज में सम्मान प्राप्त किया।

साथ ही, उन्होंने ग्रामीण स्वास्थ्य, स्वच्छता, पौष्टिक आहार और पर्यावरण संरक्षण पर भी ध्यान दिया। उनका दृष्टिकोण था कि बच्चों और महिलाओं का स्वास्थ्य ही पूरे समाज की नींव है।


सरकारी सहयोग और जनसंपर्क

डॉ. कूजूर ने अपने कार्य को प्रभावी बनाने के लिए जिला प्रशासन, स्थानीय अधिकारी और समाजसेवियों के साथ सहयोग किया। उनके चिकित्सकीय दृष्टिकोण और सामाजिक सेवा के मिश्रण ने शिक्षा, स्वास्थ्य और महिला सशक्तिकरण में क्रांतिकारी बदलाव लाए। गाँव में नियमित स्वास्थ्य शिविरों के माध्यम से बच्चों और महिलाओं को टीकाकरण, पोषण और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी प्रशिक्षण दिया गया। प्रशासन और स्थानीय नेताओं का सहयोग उन्हें प्रभावशाली बनाने में मदद करता रहा।

व्यक्तिगत संघर्ष और दृढ़ निश्चय

डॉ. कूजूर ने अपने कार्य में अनेक व्यक्तिगत और सामाजिक चुनौतियों का सामना किया। गाँव की परंपराएँ, सीमित संसाधन और प्रारंभिक अस्वीकृति उनके रास्ते में बाधा बनी। लेकिन उनकी दृढ़ निश्चय, धैर्य और सेवा भावना ने उन्हें कभी पीछे नहीं हटने दिया। उनकी कहानी यह दिखाती है कि यदि लक्ष्य स्पष्ट हो और मनोबल मजबूत हो, तो कोई भी बाधा रोक नहीं सकती।

प्रेरणा का स्रोत

डॉ. कूजूर का जीवन यह संदेश देता है कि सच्ची लगन, सेवा भावना और विशेषज्ञता से समाज में स्थायी परिवर्तन संभव है। उनके प्रयासों से न केवल बच्चों का स्वास्थ्य बेहतर हुआ, बल्कि उन्हें मानसिक रूप से मजबूत और आत्मनिर्भर बनाया गया। उनकी कहानी आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा, मार्गदर्शन और आशा का दीपक है।


डॉ. ग्रेस कूजूर का जीवन और योगदान केवल व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए अमूल्य धरोहर है। उनका जीवन सेवा, चिकित्सा विज्ञान, शिक्षा और समाज-सेवा का संगम है। उनकी कहानी यह सिखाती है कि बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान देकर हम समाज की नींव मजबूत कर सकते हैं। डॉ. कूजूर की दृष्टि, समर्पण और विशेषज्ञता आने वाली पीढ़ियों के लिए स्थायी प्रेरणा है।


Popular posts from this blog

MONA SINGH: REDEFINING LIFE AFTER DIVORCE

Journey of soul by Dr Harvinder Mankkar

An Evening in the Name of Anand Bakshi” – A Historic Tribute to the Soul Behind the Songs